वस्तुतः यहाँ मस्तिष्क के अवचेतनीय कोष्ठ में छिपे ‘ अहम् ' ने अभिव्यक्ति पायी है... यहाँ ‘ अहम् ' विनम्रता के आवरण में लिपटकर सामने आया है ; शाइर ने एकवचनीय प्रथम पुरुष ‘ मैं ' के बजाय बहुवचनीय ‘ हम ' के प्रयोग से ‘ अहम् ' पर परदा डालने का प्रयास किया है।