ब्रजभाषा की अपनी रूपगत प्रकृति औकारांत है अर्थात् इसकी एकवचनीय पुंलिंग संज्ञाएँ तथा विशेषण प्राय: औकारांत होते हैं;
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ब्रजभाषा की अपनी रूपगत प्रकृति औकारांत है अर्थात् इसकी एकवचनीय पुंलिंग संज्ञाएँ तथा विशेषण प्राय: औकारांत होते हैं;
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ब्रजभाषा की अपनी रूपगत प्रकृति औ कारांत है अर्थात् इसकी एकवचनीय पुंलिंग संज्ञाएँ तथा विशेषण प्राय: औकारांत होते हैं;
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ब्रजभाषा में अपना रूपगत प्रकृति औकारांत है यानि कि इसकी एकवचनीय पुंलिंग संज्ञा और विशेषण प्राय: औकारांत होते हैं;
6.
शाइर ने एकवचनीय प्रथम पुरुष ' मैं' के बजाय बहुवचनीय 'हम' के प्रयोग से 'अहम्' पर परदा डालने का प्रयास किया है।
7.
उनकी कविता एकवचनीय स्थानीयता को बहुवचनीय विपुलता से भर देती है और विशाल कांपती हुई परिधि को जैसे केन्द्रीयता प्रदान करती है।
8.
उनकी कविता एकवचनीय स् थानीयता को बहुवचनीय विपुलता से भर देती है और विशाल कांपती हुई परिधि को जैसे केन् द्रीयता प्रदान करती है।
9.
ब्रजभाषा में अपना रूपगत प्रकृति औकारांत है यानि कि इसकी एकवचनीय पुंलिंग संज्ञा और विशेषण प्राय: औकारांत होते हैं ; जैसे खुरपौ, यामरौ, माँझौ आदि संज्ञा शब्द औकारांत हैं।
10.
वस्तुतः यहाँ मस्तिष्क के अवचेतनीय कोष्ठ में छिपे ‘अहम् ' ने अभिव्यक्ति पायी है...यहाँ ‘अहम्' विनम्रता के आवरण में लिपटकर सामने आया है; शाइर ने एकवचनीय प्रथम पुरुष ‘मैं' के बजाय बहुवचनीय ‘हम' के प्रयोग से ‘अहम्' पर परदा डालने का प्रयास किया है।