ओघ में आत्मोत्क्रान्ति के द्योतक मिथ्यात्व, सासादन, मिश्र अविरति आदि चौदह गुणस्थानों का और आदेश में गति, इन्द्रिय, काय, योग, वेद आदि चौदह मार्गणाओं का विवेचन है।
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विष्णुपदी गंगे सभी लोकों को पवित्र करने वाली, अघ ओघ की बेड़ियों को काटने वाली, पतितों का उद्धार करने वाली तथा दुःखों को विदीर्ण करने वाली है।
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विष्णुपदी गंगे सभी लोकों को पवित्र करने वाली, अघ ओघ की बेड़ियों को काटने वाली, पतितों का उद्धार करने वाली तथा दुःखों को विदीर्ण करने वाली है।.......
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ओघ में आत्मोत्क्रान्ति के द्योतक मिथ्यात्व, सासादन, मिश्र अविरति आदि चौदह गुणस्थानों का और आदेश में गति, इन्द्रिय, काय, योग, वेद आदि चौदह मार्गणाओं का विवेचन है।
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इसकी संरचना कमल के आकार की है, अतः अक्सर इसे ’कमलमन्दिर ’ कहा जाता है,; गोधूलि-बेला से ठीक पूर्व, इस मंदिर का दृश्य बड़ा नयनाभिरामी होता है जब मन्दिर को ओघ प्रकाशित किया जाता है।
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काल-संन्यास लेकर थोड़ा-बहुत जप-तप करने पर कष्ट से बचने के लिये यह भावना कर लेना कि ' जब समय आयेगा, आप ही सिद्धि हो जाएगी, प्रत्येक कार्य अपने समय पर ही होता है, व्यर्थ आत्मज्ञान के लिये कष्टक्यों उठाना? ' काल अथवा ओघ नामक तुष्टि है ।