विष्णुपदी गंगे सभी लोकों को पवित्र करने वाली, अघ ओघ
5.
इस प्ररूपणा का विषय-विवेचन ओघ और आदेश क्रम से किया गया है।
6.
इस प्ररूपणा का विषय-विवेचन ओघ और आदेश क्रम से किया गया है।
7.
होतो उपहास तिचाही, होतो जसा भावनांचा, असतो तिच्यात उल्हास कधी, कधी ओघ प्रेमाचे,
8.
काल के ओघ में पंडित, राजा और मंत्रीयों ने मिल के साठगांठ की और तय किया कि सिर्फ़ पुरुष मंत्रजाप करेंगे।
9.
कोऊ दिजेश को मानत है अरु कोऊ महेश को एश बतै है ॥ कोऊ कहै बिशनो बिशनाइक जाहि भजे अघ ओघ कटै है ॥
10.
त्यामुळे त्यांच्या मातांच्या काजळ घातलेल्या डोळ्यातून अश्रूंचा जो प्रवाह सुरु झा तो कालिंद पर्वतापासून निघालेल्या यमुनेचाच दूसरा ओघ आहे की काय असे वाटायला लागले आहे.