(2) द्वितीयक योनिशोथ-पेसेरी के आघात, तीव्र पूतिरोधक द्रव्यों से योनिप्रक्षालन, गर्भनिरोधक रसायन, गर्भाशय ग्रीवा से चिरकालिक औपसर्गिक स्राव आदि के पश्चात् होनेवाले योनिशोथ।
12.
इन त्वचा रोगो मे अधिकतर औपसर्गिक या छूत रोग हैं जो स्पर्श से या प्रसंग करने से या एक साथ सोने से एक दूसरे के कपड़े पहनने से हो जाते हैं।
13.
कौमारभृत्य के अंतर्गत कुमार का पोषण, रक्षण, उसकी परिचारिका या धात्री, दुग्ध या आहार जन्य विकार, शारीरिक विकृतियाँ, गृहजन्य बाधा एवं औपसर्गिक रोग तथा आगुंतक रोगों का विवरण एवं चिकित्सा वर्णित हैं।
14.
इस रोग का औपसर्गिक कारण एक प्रकार का विषाणु (virus) होता है, जो कफ, मल, मूत्र, दूषित जल तथा खाद्य पदार्थों में विद्यमान रहता है ;