एक और मत जिसका प्रतिनिधित्व यामागूची सुसुमू और उनके छात्र ओगावा इचिजो करते हैं, उन्होंने तथागतगर्भ को वैदिक विचारों के बिना ही समझने में सफलता पाई और उन्होंने उसे रिक्तता और कारणत्व की बौद्ध परंपरा में ही पाया जो किसी भी तरह के अद्वैतवाद को सिरे से नकारते हैं.
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एक और मत जिसका प्रतिनिधित्व यामागूची सुसुमू और उनके छात्र ओगावा इचिजो करते हैं, उन्होंने तथागतगर्भ को वैदिक विचारों के बिना ही समझने में सफलता पाई और उन्होंने उसे रिक्तता और कारणत्व की बौद्ध परंपरा में ही पाया जो किसी भी तरह के अद्वैतवाद को सिरे से नकारते हैं.
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जो दृश्य-सृष्टिका कारण है, जो दृश्य-सृष्टिका द्रष्टा है वो दोनोँ एक है जुदा-जुदा नहीँ है-कारणत्व उपलक्षित चैतन्य और प्रमातृत्व उपलक्षित चैतन्य हमारे शरीरके भीतर जो जानकार है उस जानकारसे जिस चैतन्यको सूचना होती है और सारी सृष्टिमेँ जो सर्वज्ञ-सर्वशक्तिमान चैतन्यकी सूचना होती है उन दोनोँमेँ एक ही चैतन्य ब्रह्म है ।
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प्रशस्तभाष्य की सेतु-टीका में पद्मनाभ मिश्र ने पूर्वपक्ष के रूप में भेद, शक्ति, शुद्धि, अशुद्धि, भावना, स्वत्व, क्षणिक, वैशिष्ट्य, समूह, प्रकारित्व, संख्या, सादृश्य, तारत्व, मन्दत्व, आधाराधेयभाव, व्यंजनावृत्ति, स्फोट, संसर्गमर्यादा, लिंग, विशेषण-विशेष्यभाव, कारणत्व, स्वरूप, सम्बन्ध, और तत्तेदन्ता इन 23 तत्त्वों का उल्लेख करते हुए उनके पदार्थत्व को अस्वीकृत किया पदार्थों की संख्या सात ही प्रतिपादित की।