| 11. | कबीर संत न छाडै संतई जौ कोटिक मिलहि असंत॥
|
| 12. | कोटिक हों कलधौतके धाम, करील की कुञ्जन ऊपर बारौं॥
|
| 13. | कोटिक यह कलधौत के धाम करील की कुंजन ऊपर वारौं।
|
| 14. | कोटिक कला का छी बिखराई,
|
| 15. | जहाँ कोटिक विष्णु खड़े कर जोरे, कोटिक शम्भु माया मोरे
|
| 16. | जहाँ कोटिक विष्णु खड़े कर जोरे, कोटिक शम्भु माया मोरे
|
| 17. | बानी के बिस्तार में, ताकूँ कोटिक ऐब ॥ 635 ॥
|
| 18. | कोटिक वे कलधाौत के धाम करील के कुंजन ऊपर वारौंड्ड
|
| 19. | कोटिक हू कलधौत के धाम, करील के कुंजन ऊपर वारौं॥
|
| 20. | गिरि सम होंहिं कि कोटिक गुंजा।।
|