गोलकृमि आम तौर पर सूक्ष्म जीव होते हैं, और लगभग हर ऐसे वातावरण में उत्पन्न हो जाते हैं जहां पानी होता है.
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गोलकृमि आम तौर पर सूक्ष्म जीव होते हैं, और लगभग हर ऐसे वातावरण में उत्पन्न हो जाते हैं जहां पानी होता है.
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गोलकृमि आम तौर पर सूक्ष्म जीव होते हैं, और लगभग हर ऐसे वातावरण में उत्पन्न हो जाते हैं जहां पानी होता है.
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इसी तरह महाविद्यालय के पशु परजीवी विभाग द्वारा पशुओं में गोलकृमि जैसे गंभीर रोग के निवारण के लिए जैविक उत्पाद विकसित किया गया है।
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इस प्रकार का श्वसन कुछ निम्न श्रेणी के पौधों, यीस्ट, जीवाणु, एवं अन्तः परजीवी जन्तुओं जैसे गोलकृमि, फीताकृमि,[15] मोनोसिस्टिस इत्यादि में होता है।
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एलोपैथिक दवाओं में ज्यादातर कीड़े मर जाते हैं, परन्तु जो ज्यादा खतरनाक कीड़े होते हैं, जैसे-गोलकृमि, फीताकृमि, कद्दूदाना आदि, जिन्हें पटार भी कहते हैं, वे नहीं मरतें हैं।
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छत्तीसगढ़ के दुर्ग जिले के ग्राम अंजोरा स्थित पशु चिकित्सा एवं पशु पालन महाविद्यालय के पशु वैज्ञानिकों को गायों के बांझपन को दूर करने और पशुओं में गोलकृमि रोग निवारण की नयी तकनीक विकसित करने में शानदार कामयाबी मिली है।
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महाविद्यालय के प्राध्यापक डॉ. पी. के. सान्याल के नेतृत्व में पशु वैज्ञानिकों के दल द्वारा किए गए अनुसंधान में यह पाया कि गोलकृमि (निमटोड) के नियंत्रण के लिए आथ्रोबोट्रायस ओलिगोस्पोरा और डुडिंगटोनिया फलेगरेन्स फफूंद उपयुक्त है।