इससे मालूम होता है कि ग्रन्थकर्ता महोदय के जन्म स्थान बंगाल में ही यह किंवदंती प्रसिद्ध रही होगी, जिससे उन्होंने इसको लिखा है।
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परंतु यदि ग्रन्थकर्ता महाशय के बताए हुए बारह पुराण को देखिए तो उसमें जाति-विचार का गंध भी नहीं हैं, निरूपण तो दूर रहा।
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साथ ही, यह भी याद रखना चाहिए कि ग्रन्थकर्ता ने जाति विषयक दो प्रकरण अलग ही बनाए हैं-(1) ब्राह्मणोत्पत्तिमार्तण्ड, (2) वर्णशंकरजातिनिरूपण।
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ग्रन्थकर्ता ने अपने ग्रन्थ के प्रयोजन के विषय में लिखा है कि दूसरे (व्याख्याकारों के द्वारा जो भी दुर्बोध रहा है उसके सरल प्रकाशना के लिये वे इस ग्रन्थ का प्रणयन कर रहे हैं।
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इससे यही स्पष्ट झलकता हैं कि जैसे बारहपुराण का नाम ग्रन्थकर्ता महाशय ने झूठ-मूठ लिया हैं वैसे ही या तो तन्त्र ग्रन्थ का कल्पित नाम रख दिया है, अथवा यदि ऐसा ग्रन्थ कहीं पर्वतादि के गुफाओं में मिले भी तो उसमें जाति का विचार नहीं हैं।
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इसके विषय में इस जगह मुझे यही कहना हैं कि उस ग्रन्थ के नाम पर ग्रन्थकर्ता को केवल अपनी योग्यता की नोटिस देनी थी, क्योंकि ग्रन्थ के टाइटिल पेज पर आपने अपने सारे विशेषण लिखे थे ही, फिर उन्हीं की आवृत्ति 90 वें पृष्ठ से ले कर प्राय: दो परिच्छेदों में की।