बोली की ग्राम्यता तथा उसकी विकृति से यह दोष नहीं देसकते कि बोलीभाषा की निचली सतह है, वह अध्ययन के लिए पर्याप्त सामग्री नहींदे सकती, उसका कोई राजनीतिक महत्त्व नहीं है, वह असभ्य है.
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इसके साथ ही एक बात खास तौर पर कहनी है, वह यह कि जब मैं चाहता हूँ कि हमारे देश में गाँव जीवित हो उठें, तब इस बात को हरगिज नहीं चाहता कि हममें फिर से ग्राम्यता या गँवारूपन आ जाए।
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बड़े खेद का विषय है कि आज तक हमारे देश में समवाय पद्धति सिर्फ रुपए उधार देने में ही थक कर एक जगह बैठ गई, यह तो महाजनी ग्राम्यता को ही कुछ झाड़पोंछ कर साफ-सुथरा रूप दिया गया है-सम्मिलित उद्योग से जीविका उपार्जन और भोग के काम में वह नहीं लग सकी।