सहर में रहूँ, तो इतना किराया कहाँ से लाऊँ, घास-चारा कहाँ मिले? इतनी जगह कहाँ मिली जाती है? हाँ, औरों की भाँति दूधा में पानी मिलाने लगूँ, तो गुजर हो सकती है ; लेकिन यह करम उम्र-भर नहीं किया, तो अब क्या करूँगा।
12.
अतः मनुष्य को चाहिए कि अपने भोजन को देखे, (24) कि हमने ख़ूब पानी बरसाया, (25) फिर धरती को विशेष रूप से फाड़ा, (26) फिर हमने उसमें उगाए अनाज, (27) और अंगूर और तरकारी, (28) और ज़ैतून और खजूर, (29) और घने बाग़, (30) और मेवे और घास-चारा, (31) तुम्हारे लिए और तुम्हारे चौपायों के लिए जीवन-सामग्री के रूप में (32)