| 11. | चित्र-परिचय (सिंहासन-प्रातिहार्य) मणि-मण्डित सिंहासन पर भगवान का स्वर्ण-प्रभायुक्त शरीर शोभित हो रहा है, जैसा कि उदयाचल पर
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| 12. | चित्र-परिचय जिस प्रकार सूर्योदय होते ही छाया हुआ सघन अंधकार दूर-दूर भाग रहा है और प्रकाश फैल रहा है।
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| 13. | चित्र-परिचय चन्द्रमा से भी अधिक प्रकाशमान भगवान के दिव्य मुख-मंडल को देखकर देव, मनुष्य, नागकुमार आनन्दित हो रहे हैं।
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| 14. | चित्र-परिचय अन्य दिशाओं में तारे टिमटिमाते रहते हैं, किन्तु प्रकाशमान सूर्य का रथ पूर्व दिशा में ही प्रकट होता है।
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| 15. | इसमें पाठ्य सामग्री बहुत कम है, सिर्फ टाइटल पृष्ठ, प्रस्तावना और इसमें मौजूद 215 फोटोग्राफों के संक्षिप्त चित्र-परिचय हैं।
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| 16. | चित्र-परिचय भगवान का मुख-चन्द्र सूर्य एवं चन्द्रमा से भी अधिक प्रकाशमान है, अतः भगवान के सामने इन दोनों की क्या उपयोगिता है?
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| 17. | चित्र-परिचय भगवान आदिनाथ के दिव्य चरणों में देवगण भक्तिपूर्वक नमस्कार कर रहे हैं, प्रभु के नखों से दिव्य किरणें निकल रही हैं।
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| 18. | चित्र-परिचय (शत्रु-भय-मुक्ति) रणक्षेत्र में शत्रु-पक्ष के विशाल घोड़े-हाथी व सैनिकों का कोलाहल सुनकर भक्त, अपनी रक्षा के लिए, प्रभु की स्तुति करता है।
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| 19. | चित्र-परिचय (छत्रत्रय प्रातिहार्य) सूर्य की प्रचण्ड किरणों को रोकते हुए तीन छत्र और तीन लोक पर प्रभु का सिंहासन त्रिलोक-स्वामित्व का प्रतीक है।
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| 20. | चित्र-परिचय पृथ्वी, जल, तेजस् एवं वायु इन तत्त्वों में जितने शुभ-शान्त परमाणु थे, उन सबको आकृष्ट कर प्रभु की देह का निर्माण हुआ।
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