| 1. | चित्र-परिचय (सुर पुष्प-वृष्टि प्रातिहार्य)
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| 2. | चित्र-परिचय संसार के सभी मुनिजन प्रभु आदिदेव को आराध्य मानकर वन्दना-भक्ति-स्तुति करते हैं।
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| 3. | चित्र-परिचय (दिव्य-ध्वनि प्रातिहार्य) भगवान के समवसरण में देव-मानव-पशु-पक्षी आदि सभी उपस्थित होते हैं।
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| 4. | हमकदों की वार्तालाप-मुद्रा थी. इसके नीचे छपे चित्र-परिचय के अक्षर तक मुझे आज भी
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| 5. | चित्र-परिचय तराजू, दीपक आदि चित्र नीति, ज्ञान, विनम्रता, वैराग्य, निःस्पृहता और दयालुता के प्रतीक हैं।
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| 6. | चित्र-परिचय स्वर्ग की सुन्दरियों के नृत्य-संगीत आदि से भी प्रभु का चित्त बिलकुल निर्विकार / अकम्प है।
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| 7. | चित्र-परिचय (रोग-भय मुक्ति) जलोदर रोग से आक्रान्त व्यक्ति जीवन से निराश होकर चिन्ता में डूबा है।
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| 8. | चित्र-परिचय भगवान का रूप निहारता हुआ भक्त मुग्ध होकर उन्हीं पर अपलक दृष्टि टिकाये हुए है।
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| 9. | चित्र-परिचय प्रभु के दिव्य प्रभाव के कारण भक्त के साधारण भक्तिवचन भी सबका मन मोहने लगते हैं।
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| 10. | चित्र-परिचय भक्त के हाथ में अड़तालीस श्लोकों के प्रथमाक्षर से चिह्नित अड़तालीस पुष्पों वाली सुन्दर माला है।
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