चित्र-परिचय वाक्य
उच्चारण: [ chiter-perichey ]
"चित्र-परिचय" अंग्रेज़ी मेंउदाहरण वाक्य
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- चित्र-परिचय (सुर पुष्प-वृष्टि प्रातिहार्य)
- चित्र-परिचय संसार के सभी मुनिजन प्रभु आदिदेव को आराध्य मानकर वन्दना-भक्ति-स्तुति करते हैं।
- चित्र-परिचय (दिव्य-ध्वनि प्रातिहार्य) भगवान के समवसरण में देव-मानव-पशु-पक्षी आदि सभी उपस्थित होते हैं।
- हमकदों की वार्तालाप-मुद्रा थी. इसके नीचे छपे चित्र-परिचय के अक्षर तक मुझे आज भी
- चित्र-परिचय तराजू, दीपक आदि चित्र नीति, ज्ञान, विनम्रता, वैराग्य, निःस्पृहता और दयालुता के प्रतीक हैं।
- चित्र-परिचय स्वर्ग की सुन्दरियों के नृत्य-संगीत आदि से भी प्रभु का चित्त बिलकुल निर्विकार / अकम्प है।
- चित्र-परिचय (रोग-भय मुक्ति) जलोदर रोग से आक्रान्त व्यक्ति जीवन से निराश होकर चिन्ता में डूबा है।
- चित्र-परिचय भगवान का रूप निहारता हुआ भक्त मुग्ध होकर उन्हीं पर अपलक दृष्टि टिकाये हुए है।
- चित्र-परिचय प्रभु के दिव्य प्रभाव के कारण भक्त के साधारण भक्तिवचन भी सबका मन मोहने लगते हैं।
- चित्र-परिचय भक्त के हाथ में अड़तालीस श्लोकों के प्रथमाक्षर से चिह्नित अड़तालीस पुष्पों वाली सुन्दर माला है।
- चित्र-परिचय (सिंहासन-प्रातिहार्य) मणि-मण्डित सिंहासन पर भगवान का स्वर्ण-प्रभायुक्त शरीर शोभित हो रहा है, जैसा कि उदयाचल पर
- चित्र-परिचय जिस प्रकार सूर्योदय होते ही छाया हुआ सघन अंधकार दूर-दूर भाग रहा है और प्रकाश फैल रहा है।
- चित्र-परिचय चन्द्रमा से भी अधिक प्रकाशमान भगवान के दिव्य मुख-मंडल को देखकर देव, मनुष्य, नागकुमार आनन्दित हो रहे हैं।
- चित्र-परिचय अन्य दिशाओं में तारे टिमटिमाते रहते हैं, किन्तु प्रकाशमान सूर्य का रथ पूर्व दिशा में ही प्रकट होता है।
- इसमें पाठ्य सामग्री बहुत कम है, सिर्फ टाइटल पृष्ठ, प्रस्तावना और इसमें मौजूद 215 फोटोग्राफों के संक्षिप्त चित्र-परिचय हैं।
- चित्र-परिचय भगवान का मुख-चन्द्र सूर्य एवं चन्द्रमा से भी अधिक प्रकाशमान है, अतः भगवान के सामने इन दोनों की क्या उपयोगिता है?
- चित्र-परिचय भगवान आदिनाथ के दिव्य चरणों में देवगण भक्तिपूर्वक नमस्कार कर रहे हैं, प्रभु के नखों से दिव्य किरणें निकल रही हैं।
- चित्र-परिचय (शत्रु-भय-मुक्ति) रणक्षेत्र में शत्रु-पक्ष के विशाल घोड़े-हाथी व सैनिकों का कोलाहल सुनकर भक्त, अपनी रक्षा के लिए, प्रभु की स्तुति करता है।
- चित्र-परिचय (छत्रत्रय प्रातिहार्य) सूर्य की प्रचण्ड किरणों को रोकते हुए तीन छत्र और तीन लोक पर प्रभु का सिंहासन त्रिलोक-स्वामित्व का प्रतीक है।
- चित्र-परिचय पृथ्वी, जल, तेजस् एवं वायु इन तत्त्वों में जितने शुभ-शान्त परमाणु थे, उन सबको आकृष्ट कर प्रभु की देह का निर्माण हुआ।
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