मित्रों, हमारा देश इस समय जनसंख्या-विस्फोट के युग से गुजर रहा है.जहाँ देखिए वहीं अनियंत्रित और अनुशासनहीन भीड़.नई पीढ़ी प्रत्येक पुराने मूल्य को नकारने पर आमादा है.मानो केवल पुराना होना ही सबसे बड़ा कलंक हो गया.पुराने मूल्य ध्वस्त हो रहे हैं और नए मूल्यों की स्थापना भी नहीं हो रही.परिणाम यह है कि हमारा भारतीय समाज एक शाश्वत मूल्यहीनता के दौर में प्रवेश कर गया है.
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शिकारी आएगा जाल बिछाएगा अब तो भगवान भी नहीं रहे सुरक्षित मित्रों, हमारा देश इस समय जनसंख्या-विस्फोट के युग से गुजर रहा है.जहाँ देखिए वहीं अनियंत्रित और अनुशासनहीन भीड़.नई पीढ़ी प्रत्येक पुराने मूल्य को नकारने पर आमादा है.मानो केवल पुराना होना ही सबसे बड़ा कलंक हो गया.पुराने मूल्य ध्वस्त हो रहे हैं और नए मूल्यों की स्थापना भी नहीं हो रही.परिणाम यह है कि हमारा भारतीय समाज एक शाश्वत मूल्यहीनता के दौर में प्रवेश कर गया है.
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अपने चारों तरफ सिर घुमाकर तो देखिए भ्रष्टाचार, बेरोजगारी, निर्धनता, जनसंख्या-विस्फोट, मादक पदार्थों का दुरुपयोग, बालश्रम, विकलांगता, कालाधन, भिक्षावृत्ति, वृद्धावस्था, जनस्वास्थ्य, आत्महत्या, मानसिक रोग, बाल अपराध, एड्स, दहेज़-प्रथा, मानवाधिकार-हनन, खाद्य-सुरक्षा और कुपोषण, जातीयता, साम्प्रदायिकता और छद्म धर्मनिरपेक्षता, जनजातीय समस्याएँ, आतंकवाद और उग्रवाद, शिक्षा की दुर्गति, पर्यावरण-विनाश, आवास की कमी, मानव-व्यापार और देह-व्यापार, महंगाई जैसी अनगिनत ऐसी सामाजिक समस्याएँ हैं जिनसे देश की जनता को रोजाना रूबरू होना पड़ता है.