कहते हैं तथा उन घटक रेखाओं के नमूने का प्रकृत त्रिक् या लोरेंट्स त्रिक् (
12.
त्रिक् या प्रत्यभिज्ञा दर्शन का कहना है कि परम तत्व वह प्रकाश है जिसे अपने प्रकाश का विमर्श भी है।
13.
अनुकंपी तंत्र के दो भाग हैं, एक कपाल (क्रेनियल) भाग और दूसरा त्रिक् (सैक्रल) भाग।
14.
त्रिक् या प्रत्यभिज्ञा दर्शन का कहना है कि परम तत्व वह प्रकाश है जिसे अपने प्रकाश का विमर्श भी है।
15.
त्रिक् भाग के तंतु श्रोणि की तीन बड़ी तंत्रिकाओं द्वारा, श्रोणिगुहा के भीतर स्थित अंगों, बृहदांत्र, मलाशय, मूत्राशय, जनन अंगों आदि, में वितरित हो जाते हैं।
16.
ने यह दिखाया कि अप्रकृत ज़ेमान नमूनों की घटक रेखाओं का विस्थापन, प्रकृत त्रिक् रेखाओं के विस्थापन गुणनफल के रूप में प्रकट किया जा सकता है।
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त्रिक् भाग के तंतु श्रोणि की तीन बड़ी तंत्रिकाओं द्वारा, श्रोणिगुहा के भीतर स्थित अंगों, बृहदांत्र, मलाशय, मूत्राशय, जनन अंगों आदि, में वितरित हो जाते हैं।
18.
इन तीनों व्याहृतियों का त्रिक् अनेकार्थ बोधक हैं, वे अनेकों भावनाओं का, अनेकों दिशाओं का संकेत करती हैं, अनेकों की ओर हमारा ध्यान आकर्षित करती हैं ।
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इन तीनों व्याहृतियों का त्रिक् अनेकार्थ बोधक हैं, वे अनेकों भावनाओं का, अनेकों दिशाओं का संकेत करती हैं, अनेकों की ओर हमारा ध्यान आकर्षित करती हैं ।।
20.
सन् 1907 में रूँगे (Runge) ने यह दिखाया कि अप्रकृत ज़ेमान नमूनों की घटक रेखाओं का विस्थापन, प्रकृत त्रिक् रेखाओं के विस्थापन गुणनफल के रूप में प्रकट किया जा सकता है।