शब्दार्थ:-अस्माकं = हमारे ; तु = भी ; विशिष्टाः = प्रधान हैं ; ये = जो जो ; तान = उनको ; निबोध =जान लीजिये ; द्विजोत्तम = ब्राह्मणों में श्रेष्ट ; नायकः = सेनापति हैं ; मम = मेरी ; सैन्यस्य = सेना के ; संज्ञार्थं = जानने के लिये ; तान = उनको ; ब्रवीमि = बताता हूँ ; ते = आपको।
12.
देवयानी की ये बातें सुनकर देवगुरु बृहस्पति के पुत्र कच ने कहा, 'सुभांगी देवयानी! जैसे तुम्हारे पिता शुक्राचार्य मेरे लिए पूजनीय और माननीय हैं, उसी तरह तुम भी हो, बल्कि उनसे भी बढ़कर मेरी पूजनीया हो, क्योंकि धर्म की दृष्टि से तुम गुरुपुत्री हो, तुम मेरी पूजनीया बहन हो, अतः तुम्हें मुझसे ऐसी बात नहीं कहनी चाहिए।' ' द्विजोत्तम कच! तुम मेरे गुरु के पुत्र हो, मेरे पिता के नहीं, अतः मेरे भाई नहीं लगते,' यह सुनकर कच कहने लगे, 'उत्तम व्रत का आचरण करने वाली सुंदरी!
13.
जिस समय रावण सीता का अपहरण कर उसे ले जा रहा था तब जटायु को देख कर सीता ने कहाँ-हे आर्य जटायु! यह पापी राक्षस पति रावण मुझे अनाथ की भान्ति उठाये ले जा रहा हैं सन्दर्भ-अरण्यक 49 / 38 जटायो पश्य मम आर्य ह्रियमाणम् अनाथ वत् | अनेन राक्षसेद्रेण करुणम् पाप कर्मणा || ४ ९-३ ८ कथम् तत् चन्द्र संकाशम् मुखम् आसीत् मनोहरम् | सीतया कानि च उक्तानि तस्मिन् काले द्विजोत्तम || ६ ८-६ यहाँ जटायु को आर्य और द्विज कहा गया हैं।