द्विजोत्तम! राजा के भाग्य से इस समय हमें आपका दर्शन मिल गया है।
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हे द्विजोत्तम, हमारी ओर भी जो विशिष्ट योद्धा हैं उन्हें आप को बताता हूँ।
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द्विजोत्तम! राजा के भाग्य से इस समय हमें आपका दर्शन मिल गया है ।
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द्विज अपने कर्तव्य से च्युत हो तो द्विजोत्तम का यह कर्तव्य है कि उसे स्वधर्मानुष्ठान में आरुढ़ करें।
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गायत्री-ब्रह्म: सम्पूज्यस्तु द्विजोत्तम: ॥-पारा ० स्मृति ८ / ३ १ ‘ गायत्री से रहित ब्राह्मण शूद्र से भी अपवित्र है।
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ब्राह्मण (विप्र, द्विज, द्विजोत्तम, भूसुर) हिन्दू समाज की एक जाति है | ब्राह्मण को विद्वान, सभ्य और शिष्ट माना जाता है।
9.
इस दिन सायंकाल भगवान शिव-पार्वती, स्वामी कार्तिकेय, गणेश एवं चंद्रमा का षोडशोपचार विधि से पूजन करते हुए लड्डू का नैवेद्य अर्पित करें और रात्रि के समय चंद्रमा का दर्शन करके यह मंत्र पढते हुई अर्घ्य दें, मंत्र है-” सौम्यरूप महाभाग मंत्रराज द्विजोत्तम, मम पूर्वकृतं पापं औषधीश क्षमस्व मे।
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' ' द्विजोत्तम कच! तुम मेरे गुरु के पुत्र हो, मेरे पिता के नहीं, अतः मेरे भाई नहीं लगते, ' यह सुनकर कच कहने लगे, ' उत्तम व्रत का आचरण करने वाली सुंदरी! तुम मुझे ऐसा काम करने के लिए प्रेरित कर रही हो, जो कदापि उचित नहीं हैं।