हर मार्क् सवादी जानता है कि हर चीज़ का एक परिघटनात्मक स्तर होता है, प्रतीति (appearance) का स्तर होता है और ऐन्द्रिक गोचरता के द्वारा हम उस चीज़ के बोध या इन्द्रियग्राह्यता (perception) के धरातल तक पहुँचते हैं।
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जब एक आम आदमी कहता है कि हम मज़दूर हैं और अपने हक़ के लिए लड़ रहे हैं, या कहता है कि पूँजीवाद लुटेरा है, या कहता है हम फलाँ जाति के हैं, या हम जाति को नहीं मानते, तो वह परिघटनात्मक स्तर पर, बोध के स्तर पर होता है।