उसके बाद प्रकार्यवाद, संरचनावाद आया और उसके बाद हम इसमें बुरी तरह से उलझ गये कि इतिहास बेकार है, दर्शन के प्रश्न बेकार हैं, शुद्ध सामाजिक तथ्यों के ही रूप में समझना चाहिए और इसमें हमें परम्परा और इतिहास में कोई सहायता नहीं मिलती है।
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उसके बाद प्रकार्यवाद, संरचनावाद आया और उसके बाद हम इसमें बुरी तरह से उलझ गये कि इतिहास बेकार है, दर्शन के प्रश्न बेकार हैं, शुद्ध सामाजिक तथ्यों के ही रूप में समझना चाहिए और इसमें हमें परम्परा और इतिहास में कोई सहायता नहीं मिलती है।
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यह शब्द पहली बार 1920 के दशक में व्यापक रूप से प्रयुक्त हुआ, जब कई जर्मन-भाषी सिद्धांतकारों ने बड़े पैमाने पर इस बारे में लिखा, इनमें सबसे उल्लेखनीय मैक्स शेलर, और कार्ल मैन्हेम हैं.20 वीं सदी के मध्य के वर्षों में प्रकार्यवाद के प्रभुत्व के साथ, ज्ञान का समाजशास्त्र, समाजशास्त्रीय विचारों की मुख्यधारा की परिधि पर ही बना रहा.