नि. वर्षा ऋतु आदि के प्रभाव से पूर्व संचित पित्त जब विरुद्ध भोजन, विकृत भोजन, अत्यधिक अम्ल, विदाही तथा पित्त प्रकोपक भोजन और पान करने वाले व्यक्ति मेंविदाग्ध (अधिक अम्ल) हो जाता है, तो उसे 'अम्लापित्त' कहा जाता है.
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सावधानी: कच्चा कुम्हड़ा त्रिदोष-प्रकोपक है पुराना कुम्हड़ा पचने में भारी होता है, इसके मोटे रेशे आँतों में रह जाते हैं अतः कच्चा व पुराना कुम्हड़ा नहीं खाना चाहिए कुम्हड़े की शीतलता कम करनी हो तो उसमें मेथी का चौंक लगायें
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सावधानी: कच्चा कुम्हड़ा त्रिदोष-प्रकोपक है पुराना कुम्हड़ा पचने में भारी होता है, इसके मोटे रेशे आँतों में रह जाते हैं अतः कच्चा व पुराना कुम्हड़ा नहीं खाना चाहिए कुम्हड़े की शीतलता कम करनी हो तो उसमें मेथी का चौंक लगायें
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यों तो ऋतु आदि के प्रभाव से दोष संचय काल में संचित हो कर अपने प्रकोप काल में ही कुपित होते हैं, परंतु दोषों के प्रकोपक कारणों की अधिकता, या प्रबलता के कारण तत्काल भी कुपित हो जाते हैं, जिससे जुकाम हो जाता है ; अर्थात नज़ला-जुकाम शीत काल के अतिरिक्त भी हो सकता है।
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इस प्रकार पित्त जनित ये 40 रोग हैः पित्त प्रकोप एवं शमन विदाहि (वंश, करीरादि पित्त प्रकोपक), कटु (तीक्ष्ण), अम्ल (खट्टे) एवं अत्युष्ण भोजनों (खानपानादि) के सेवन से, अत्यधिक धूप अथवा अग्नि सेवन से, क्षुधा और प्यास के रोकने से, अन्न के पाचन काल में, मध्याह्न में और आधी रात के समय उपरोक्त कारणों से पित्त का कोप (पित्त का दुष्ट) होता है।