मुमकिन है कि कुछ यार-दोस् तों (पाठक हमारे लिए पारिवारिक सदस् यों से बढ कर यार-दोस् त हैं) को यहां सौंदर्यबोध की कमी नज़र आती हो, भाषा सुगठित न लगती हो, शैली प्रवाहहीन दिखती हो ; ढांचे में आकर्षण का अभाव झलकता हो, टेक् नॉल्जिकली लुंज-पुंजग़ी का एहसास होता हो …: उनके हर एहसास को सरोकार विनम्रतापूर्वक ग्रहण करता है, पर बदले में शर्मिंदग़ी नहीं महसूस करता.
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, उनका कहना था कि अनेक मनुष्य ऐसे होते हैं जो सागर की गर्जन के सामान चीखते है लेकिन उनका जीवन सडती हुई दलदल कि तरह खोखला और प्रवाहहीन होता है, अपने सिरों को पर्वतों की चोटी के सामान उठाये रहते हैं लेकिन उनकी आत्माएं कंदराओं की गहराइयों में सोयी रहती हैं … वो वैरागी का जीवन बिताना ढोंगी होने की निशानी मानते थे तथा फल, मेवे, मांस और मदिरा के साथ जंगल में एकांतवास करते थे ….