मुझे तो कई बार प्रियवंद, मनीषा और प्रत्यक्षा की कहानियाँ भी कविता लगती हैं और कई बार कुछ नामचीन कवियों{नाम नहीं लूंगा, मेरे भगवान लोग खफ़ा हो जायेंगे} की कवितायें भी निबंध जैसी लगती हैं।
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जहाँ प्रियवंद की कहानियों में ऐसा ग़ज़ब का प्रवाह मिलता है कि वो किसी कविता से कम लयात्मक नहीं लगती मुझे, वहीं पंकज राग की बहुचर्चित “ 1857 ” को कविता कहने में हिचक होती है मुझे।
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मुझे तो कई बार प्रियवंद, मनीषा और प्रत्यक्षा की कहानियाँ भी कविता लगती हैं और कई बार कुछ नामचीन कवियों {नाम नहीं लूंगा, मेरे भगवान लोग खफ़ा हो जायेंगे} की कवितायें भी निबंध जैसी लगती हैं।
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संगमन-1, 2 और 3 अक्टबूर को नवें दशक के प्रमुख लेखकों का कानपुर में आयोजित संगम था, इसका आयोजन नवें दशक के ही स्थानीय तीन लेखकों ने किया था-प्रियवंद, कमलेश भट्ट “ कमल ” एवं अमरीक सिंह दीप ।
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आपने लेखक बनना क्यों पसन्द किया? पहली बार लिखना कब शुरू किया? लिखने के लिए क्या करना चाहिये? इन सारे सावलों के जवाब बारी-बारी से जितेन्द्र भाटिया, गिरिराज किशोर, भाल चन्द्र जोशी, प्रियवंद, वन्दना राग, रेखा, हृषीकेश सुलभ एवं कमलेश भटट कमल ने दिए ।