प्लूरिसी (Pleurisy) नामक रोग में फुफ्फुसावरण में सूजन हो जाती है जिसके कारण सीरमी द्रव, (इसे प्लूरल फ्ल्यूड भी कहते हैं) की मात्रा ज्यादा होने के कारण प्लूरल गुहा अधिक बढ़ जाती है।
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कास, श्वास, कुकर खांसी, न्युमोनिया, दमा, फुफ्फुसावरण शोथ आदि में अहिफेन का प्रयोग किया जाता है, किन्तु इसकी मात्रा पर पूरा विचार कर लेना आवश्यक है क्योंकि बहुत शीघ्र यहश्वसन केन्द्र का अवरोध करके मृत्यु की सम्भावना उत्पन्न कर देती है.
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सामान्यतः फुफ्फुसावरण की दोनों परतें एक-दूसरे के संस्पर्श में रहती है, लेकिन इनके बीच द्रव की मौजूदगी से श्वसन के दौरान ये एक-दूसरे के ऊपर बिना किसी घर्षण के फिसलती (glide) है तथा बाहरी आघात से भी सुरक्षित रहती है।
14.
फेफड़ों के तल के पास पहुंचकर यह (विसरल प्लूरा) बदलकर दूसरी परत ‘ पार्श्विक फुफ्फुसावरण ' (parietal pleura) बनाती है, जो वक्षीय भित्ति की आतंरिक परत का अस्तर बनाती है और डायाफ्राम की ऊपरी परत को ढककर रहती है।
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इसके लक्षणों में पेट में दर्द होना, छाती में दर्द होना, पेट, मूत्राशय या आँतों के भरे होने पर फुफ्फुसावरण के दर्द की तरह छाती में दर्द होना, पीठ में दर्द होना, प्लीहा पर दबाव पड़ने की वजह से जल्दी तृप्त हो जाना या साइटोपेनिया के साथ की वजह से एनीमिया के लक्षण भी शामिल हो सकते हैं.
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इसके लक्षणों में पेट में दर्द होना, छाती में दर्द होना, पेट, मूत्राशय या आँतों के भरे होने पर फुफ्फुसावरण के दर्द की तरह छाती में दर्द होना, पीठ में दर्द होना, प्लीहा पर दबाव पड़ने की वजह से जल्दी तृप्त हो जाना या साइटोपेनिया के साथ की वजह से एनीमिया के लक्षण भी शामिल हो सकते हैं.