कई मेहराबों से मानो उसने गुर्रा कर कहा, '' कौन हो तुम, इतनी रात गए मेरा एकान्त भंग करनेवाले? '' विरोध के फूत्कार का यह थपेड़ा इतना सच्चा था कि सागर मानो फुसफुसा ही उठा, '' मैं-सागर, आसरा ढूँढ़ता हूँ-रैनबसेरा-'' पोपले मुँह का बूढ़ा जैसे खिसिया कर हँसे ; वैसे ही हवा हँस उठी।