रात गए मेरा एकान्त भंग करनेवाले? ” विरोध के फूत्कार का यह
7.
छोड़ रहे हैं जग के विक्षत वक्षस्थल पर शत शत फेनोच्छ्वसित, स्फीत फूत्कार भयंकर।
8.
निकल रहा है भंयकर फूत्कार अपरिमित विषधार हजारों हजार फनों से लुभाता ही जा रहा है हमें नित नये प्रलोभनों से।
9.
यद्यपि, दूर कहीं, बादल की गर्जन थी और बूँदों का फूत्कार, और कौंध का वह प्रकाश, जो स्वयं भी कुछ नहीं दिखाता और बाद के अन्धकार को भी घना कर जाता है।
10.
धरती की अंतराग्नि की फूत्कार से रचित रमणीय पठारी भूमि! मालवा का क्षेत्र उसी का एक भाग है-भारत का हृदय स्थल, सपनों के समान ही ऊबड़-खाबड़, जिसे सींचते रहे जीवनदायी पयस्विनियों के सरस प्रवाह!.