तत्पश्चात महातेजस्वी महाकपि ने क्रमशः वज्रदंष्ट्र, शुक, सारण, मेघनाद, जम्बुवाली, सुमाली, शोणिताक्ष, कुम्भकर्ण, नरान्तक, यज्ञ-शत्रु, ब्रह्मशत्रु आदि प्रमुख राक्षसों के भवनों को अग्नि की भेंट चढ़ा दिया।
12.
तदन्तर महाकपि हनुमान ने एक सुवर्णमयी शिंशपा (अशोक) वृक्ष देखा जो बहुत से लतावितानों और अगणित पत्तों से व्याप्त था तथा सब ओर से सुवर्णमयी वेदिकाओं से घिरा था।
13.
उन बाणों की चिन्ता न कर राम ने महाकपि सुग्रीव से कहा, ” तुम लोग लक्ष्मण को घेरे खड़े रहो अब यह अवसर मेरे लिए उस पराक्रम को दिखाने का है जिसकी मुझे इतने दिनों से प्रतीक्षा थी।
14.
' महाबली भीमसेन पहले बायें हाथ से, फिर दायें हाथ से तदुपरांत दोनों हाथ से अपने संपूर्ण बल का उपयोग करने के उपरांत भी जब महाकपि की पूंछ को टस से मस न कर सके, तब उन्होंने महाकपि से क्षमा याचना की।
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' महाबली भीमसेन पहले बायें हाथ से, फिर दायें हाथ से तदुपरांत दोनों हाथ से अपने संपूर्ण बल का उपयोग करने के उपरांत भी जब महाकपि की पूंछ को टस से मस न कर सके, तब उन्होंने महाकपि से क्षमा याचना की।