गौतम *, आश्वलायनगृह्यसूत्र *, बौधायनगृह्यसूत्र *, मनु *, काठकगृह्यसूत्र *, भारद्वाजगृहसूत्र * तथा अन्य लोगों के मत से ब्राह्मण, क्षत्रिय एवं वैश्य बच्चे के लिए क्रम से मुञ्ज, मूर्वा (जिससे प्रत्यंचा बनती है) एवं पटुआ की मेखला (करधनी) होनी चाहिए।
13.
ब्राह्मण्यष्टिका से कहते हैं । मूर्वा । मधुरसा । और तेजनी । तिक्तवल्लिका से कहते हैं । स्थिरा । विदारीगन्ध । शालपर्णी । अंशुमती । एक ही औषधि है । लाड्ग्ली । कलसी । क्रोष्टापुच्छा । गुहा । इनको एक ही समझना चाहिये । पुनर्नवा । वर्षाभू । कठिल्या । करुणा । ये एक ही हैं । एरण्ड को उरूवक ।
14.
चिरायता, शुंठी, देवदारू की लकड़ी, पाठा के पंचांग (जड़, तना, पत्ती, फल और फूल), मुस्तक की जड़, मूर्वा, सारिया की जड़, गुडूचीतना, इन्द्रयव और कटुकीप्रकन्द को बराबर मात्रा में लेकर काढ़ा बनाकर रख लें, फिर इसी काढ़े को 14 मिली लीटर से लेकर 28 मिली लीटर को खुराक के रूप में पिलाने से स्तनों के रोग में स्त्री को लाभ पहुंचता हैं।