तो यूनुस कहीं बीड़ी का ब्राण्ड न बदल लें, उस के डर से बना रहे बनारस का यह अंतिम लेखांश प्रस्तुत है.
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यह तथ्य स्वामी जी के एक लेखांश से भी प्रकट होता है-” यद्यपि आजकल बहुत से विद्वान् प्रत्येक मत में पाये जाते हैं।
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तो यूनुस कहीं बीड़ी का ब्राण्ड न बदल लें, उस के डर से बना रहे बनारस का यह अंतिम लेखांश प्रस्तुत है.
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सृजनशिल्पी पर जो लेखांश मैंने टिप्पणी के रूप में दिया था, वह असल में ‘हिंद स्वराज' पर मेरे लंबे आलोचनात्मक लेख का एक हिस्सा है.
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औपनिवेशिक युग में राष्ट्रवाद के उदय के विभिन्न पक्षों पर केन्द्रित प्रसिद्ध बुद्धिजीवी एजाज़ अहमद की पुस्तक का एक महत्वपूर्ण लेखांश को जनपक्ष पर प्रस्तुत करते हैं।
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देवी-देवताओं को खरीदने पर परसाई दद्दा का लेखांश आपको याद ही होगा:-दुनियां भगवान को पूजती है पर अपने से कम अक्ल मानती है..
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अक्टूबर 22, 2011 को 10:20 अपराह्न पर सृजनशिल्पी पर जो लेखांश मैंने टिप्पणी के रूप में दिया था, वह असल में ‘हिंद स्वराज' पर मेरे लंबे आलोचनात्मक लेख का एक हिस्सा है.
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उसी पुस्तक के दूसरे लेखांश में, ताओ-त्जू ने कहा था: संसार में सभी वस्तुएँ “यू” या धन से पैदा हुई हैं; और “यू” या धन की उत्पत्ति “वू” या निर्धनता से हुई है।
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उसी पुस्तक के दूसरे लेखांश में, ताओ-त्जू ने कहा था: संसार में सभी वस्तुएँ “यू” या धन से पैदा हुई हैं; और “यू” या धन की उत्पत्ति “वू” या निर्धनता से हुई है।
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संदीप अपने लेखांश में इस बात पर ज़ोर देते हैं कि नरेन्द्र मोदी ने विकास के रास्ते को चुना है और अपने कद को बढाने के लिए ऐसे राजनैतिक स्टंट करना कोई गलत बात नही।