संस्कार पद्धतियों के अनुसार प्राशनार्थ तैयार किये गये लेह्य चरु में वैदिक मंत्रों के साथ मधु, घृत तथा तुलसीदल भी मिश्रित किया जाता है।
12.
किन्तु कई हजार साल प्राचीन हमारे पौराणिक ग्रंथों में पक्वान्न, पायस, भक्ष्य, पेय, लेह्य आदि स्वादिष्ट खाद्य पदार्थों का वर्णन मिलता है।
13.
मै परमात्मा अग्निरूप और सभी प्राणियों के आश्रय से प्राण, अपान वगैरह आयुओं से युक्त होकर चतुर्विद्य खाद्य, पेय, लेह्य, और चौष्य अन्न पचाता हूँ।
14.
इतना कहकर गुहराज ने अपने साथ लाई हुई सामग्री को राम के समक्ष रख दिया और बोला, “हे, स्वामी! ये भक्ष्य, पेय, लेह्य तथा स्वादिष्ट फल आपकी सेवा में प्रस्तुत है।
15.
वाल्मीकि रामायण में निषादराज गुह के द्वारा राम को भक्ष्य, पेय, लेह्य आदि, जिनका निर्माण पकाये गए अन्नादि से होता था, भेंट करने का वर्णन आता है।
16.
सुश्रुत ने भोजन के छ: प्रकार गिनाए हैं: चूष्म, पेय, लेह्य, भोज्य, भक्ष्य और चर्व्यपाचन की दृष्टि से चूष्य पदार्थ सबसे अधिक सुपाच्य बताए गए हैं।
17.
इतना कहकर गुहराज ने अपने साथ लाई हुई सामग्री को राम के समक्ष रख दिया और बोला, ” हे, स्वामी! आपकी सेवा में यह भक्ष्य, पेय, लेह्य तथा स्वादिष्ट फलों का तुच्छ भेंट प्रस्तुत है।
18.
मस्तक पर तिलक लगा कर अक्षत लगावे और विभिन्न प्रकार के पेय, लेह्य, चोष्य, षट्रस व्यंजन परोस कर, प्रेम से अभिनंदन करते हुए, सुस्वादु भोजन ग्रहण करने को कहे एवं अपने कर कमलों से भाई को भोजन करावे।
19.
चार प्रकार के (चर्व्य, चोष्य, लेह्य, पेय अर्थात चबाकर, चूसकर, चाटकर और पीना-खाने योग्य) भोजन की विधि कही गई है, उनमें से एक-एक विधि के इतने पदार्थ बने थे कि जिनका वर्ण नहीं किया जा सकता॥ 2 ॥
20.
जो निगला जाता है, वह ' भोज्य ' है-जैसे दूध आदि तथा जो चाटा जाता है, वह ' लेह्य ' है-जैसे चटनी आदि और जो चूसा जाता है, वह ' चोष्य ' है-जैसे ईख आदि) प्रकार के अन्न को पचाता हूँ॥ 14 ॥