वैसे तो भगवान के जिस स्वरूप की पूजा करने से ही आपको सब फल मिल जाएँगे, यह शास्त्रों का कथन है फिर भी अगर आप एक से अधिक देवी-देवताओं का पूजन करना चाहें तो अपने पूजास्थल के बीच में गणेश, ईशान में विष्णु या उनके अवतार राम या कृष्ण, अग्निकोण में शिव, नैऋत्य कोण यानी दक्षिण-पश्चिम में सूर्य तथा वायुकोण यानी उत्तर-पश्चिम में देवी दुर्गा की स्थापना कीजिए।
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यदि शुक्र लग्न से ग्यारहवें या बारहवें स्थान में हो तो अग्निकोण में यात्रा करने से, मंगल दशम भाव में हो तो दक्षिण यात्रा करने से, राहु नवें और आठवें भाव में हो तो नार्सृत्य कोण की यात्रा से, शनि सप्तम भाव में हो तो पश्चिम यात्रा से, चन्द्रमा पाँचवे और छ्ठे भाव में हो तो वायुकोण की यात्रा से, बुध चतुर्थ भाव में हो तो उत्तर की यात्रा से, गुरू तीसरे और दूसरे भाव में हो तो ईशानकोण की यात्रा करने से ललाटगत होते है।