रुपसम्पन्न, यौवनसम्पन्न और विशाल कुल में उत्पन्न व्यक्ति भी विद्याहीन होने पर, सुगंधरहित केसुड़े के फूल की भाँति, शोभा नहीं देता।
12.
कहा गया है कि जो मनुष्य विद्याहीन, तपहीन, गुणहीन, दानहीन, धर्महीनएवं विवेकहीन है, वह मनुष्य वास्तव में मनुष्य कहलाने योग्य नहीं है.
13.
विद्याहीन का तो उच्च कुल में जन्म लेना व्यर्थ है, विद्वान चाहे नीच कुल में जन्म ले, पूज्य होता है।
14.
चो था सवाल यह है कि क्या कोई विद्याहीन और जंगली व्यक्ति रहस्य पूर्ण ब्रह्मांडीय सिद्धांतों का प्रतिपादन कर सकता है?
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चो था सवाल यह है कि क्या कोई विद्याहीन और जंगली व्यक्ति रहस्य पूर्ण ब्रह्मांडीय सिद्धांतों का प्रतिपादन कर सकता है?
16.
विद्याहीन विद्यालय हो या परम्परा उनकी समाप्ति तय है अतः वास्तविक विद्या और उसे सीखने में जनेऊ की सार्थकता सबसे पहले सीखनी होगी।
17.
न्न, यौवनसंपन्न, और चाहे विशाल कुल में पैदा क्यों न हुए हों, पर जो विद्याहीन हों, तो वे सुगंधरहित केसुडे के फूल की भाँति शोभा नहि देते ।
18.
अपने बालक को न पढ़ाने वाले माता व पिता अपने ही बालक के शत्रु हैं, क्योंकि हंसो के बीच बगुले की भाँति, विद्याहीन मनुष्य विद्वानों की सभा में शोभा नहीं देता।
19.
उसके मूल अधिकारों पर प्रतिबंध लगाकर पुरुष को हर जगह बेहतर बताकर नारी के अवचेन में शक्तिहीन होने का अहसास जगाया गया जिसके चलते उसे आसानी से विद्याहीन, साहसहीन कर दिया जाए।
20.
मातृ-भाषा में यदि शिक्षा की धाराप्रशस्त न हो तो इस विद्याहीन देश में मरुवासी मन का क्या होगा” गुरुदेवविश्व स्तर पर आज हमारा भारत देश हर तरह से संपन्न और प्रगतिशील माना जाता...