आप सोपाधिक हुए, प्रसन्नता हुई. मैंनेआपको लिखा कि जिसका भाष्य लोगों ने आनन्द भाष्य लिखा है वह श्री रामानन्दस्वामीजी का नहीं है.
12.
इसकी उत्पत्ति स्मृतिसापेक्ष या सुखादिसापेक्ष आत्ममन: संयोगरूपी असमवायिकरण से आत्मारूप समवायिकाकरण में होती हैं इसके दो प्रकार होते हैं: सोपाधिक तथा निरुपाधिक।
13.
सुख के प्रति जो इच्छा होती है, वह निरुपाधिक होती है और सुख के साधनों के प्रति जो इच्छा होती है, वह सोपाधिक होती है।
14.
क्योंकि उपधिभूत हेतु के कारण ही आग और धुएँ का संबंध हो सकत है, आग के कारण नहीं, इसलिए सोपाधिक हेतु साध्य का अनुमान नहीं किया जा सकता।
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क्योंकि उपधिभूत हेतु के कारण ही आग और धुएँ का संबंध हो सकत है, आग के कारण नहीं, इसलिए सोपाधिक हेतु साध्य का अनुमान नहीं किया जा सकता।
16.
[6] अग्नि का धूम के साथ सम्बन्ध सोपाधिक है, अर्थात् अगर अग्नि ' आर्द्र ईधन से उत्पन्न ' हुआ हो, तभी उससे धूम निकलता है।
17.
अर्थविस्तार की इसव्याख्या में स्पष्ट रूप से यह कमी रह जाती है कि यह सिद्धांत मूल अर्थ सेविस्तृत अर्थ तक की सोपाधिक अनुक्रियाओं के स्वरूप को स्पष्ट नहीं कर सकता.
18.
ब्रह्म की इच्छा, एवं उसी से प्राण, उससे श्रद्धा, आकाश, वाय, तेज, जल, पृथिवी, इंद्रियाँ, मन और अन्न, अन्न से वीर्य, तप, मंत्र, कर्म, लोक और नाम उत्पन्न हुए हैं जा उसकी सोलह कलाएँ और सोपाधिक स्वरूप हैं।
19.
उसी के द्वारा अन्य सोई हुई इन्द्रियां केवल अनुभव मात्र करती हैं, जबकि वे सोई हुई होती हैं सुषुप्ति अवस्था में मन का आत्मा में लय हो जाता है वही द्रष्टा, श्रोता, मंता, विज्ञाता इत्यादि है जो अक्षर ब्रह्म का सोपाधिक स्वरूप है।
20.
(३)-सुषुप्ति-(वह स्थिति, जिसमें मन भी सो जाता है, स्वप्न नहीं आता, किन्तु जागने पर यह स्मृति बनी रहती है कि, नींद अच्छी तरह आई) | (४)-तुरीया-(वह स्थिति, जिसमें सोपाधिक अथवा कोषावेष्टित जीवन की सम्पूर्ण स्मृतियाँ समाप्त हो जाती हैं।