गृहिणी या पत्नी रूपी फल तो सर्वत्र है, पर जहां वे अमृत फलरूप धारण कर लेती हैं, वहां मानव का व्यक्तित्व शालीन, सु् हृद् एवं सौम्य बन जाता है और इस प्रकार परिवार के व्यवहार में संसार का शृंगार देदीप्यमान हो उठता है।
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रस हीन, हृद य हीन........ पहले तो वीरू भाई हृद् य हीन होकर जीया जा सकता है अगर संभव है तो होगा ही जब आप जी रहें हैं-कम से कम यह हुनर किसी और को मत सिखाना वरना मेरे जैसे डॉ ० क्या करेंगे जीविका के लिये २ मोरे अघ सारद अनेक जुग गणत पार नहीं पावैं तुलसीदास प्रभु पतित पावन भरोस एहि जीए आवें भाई यह बैरी veri.. हटावैं