एक ग्रंथ (यस्न, 29.8) में अहुरमज्द अपने संदेशवाहक ज़रथुस्त्र को वाणी की संपत्ति प्रदान करते हैं क्योंकि “मानव जाति में केवल उन्होंने ही दैवी संदेश प्राप्त किया था जिन्हें मानवों के बीच ले जाना था।”
22.
जरथुस्त्र ने इन गाथाओं में अनेक देवताओं की भावना की बड़ी निंदा की है तथा सर्वशक्तिमान् ईश्वर के, जिसे वे अहुरमज्द (असुर महान्) के अभिधान से पुकारते हैं, आदेश पर चलने के लिए पारसी प्रजा को आज्ञा दी है।
23.
पादरी लोगों की दुकान का क्या होगा? यदि सभी लोग कृष्ण या गीता की शरण में चले गए तो बेचारे पादरी क्या करेंगे? भोले पादरी लोग इस श्लोक का मतलब भी ठीक से समझ नहीं पाए? इसका अर्थ इतना ही है कि हर मनुष्य का आखिरी सहारा ईश्वर ही है | ईश्वर, अल्लाह, गॉड, जिहोवा, अहुरमज्द में फर्क क्या है?