| 21. | वाचिक, उपांशु और मानस जप के तेज गति वाले अभ्यास कराए जाते हैं।
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| 22. | साधना के भी मात्र तीन ही भेद है-अंशु, उपांशु एवं प्रगल् भ.
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| 23. | उपांशु अर्थात केवल होठ ही हिले. शेष कोई अंग हरक़त न करे.
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| 24. | जप का स्वरूप वाचिक से उपांशु तथा मानस की ओर अग्रसर होने लगता है।
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| 25. | इसका जप लयबद्ध ढंग से उपांशु या मानसिक रूप में भी किया जा सकता है।
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| 26. | जुहोमि ते धरुणं मध्वो अग्रमुभा उपांशु प्रथमा पिबाव || ऋ 10 / 83 / 7
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| 27. | व्यक्ति वाचिक जप से शुरू होता है, उपांशु से होते हुए मानस जप में उतरता है।
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| 28. | व्यक्ति वाचिक जप से शुरू होता है, उपांशु से होते हुए मानस जप में उतरता है।
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| 29. | रहे उपांशु जप करना है, जो जल आप नित्य अर्पित करेंगे उसे अगले दिन अपने स्नान के
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| 30. | तब भयास की निरंतरता इस जप को वाचिक से उपांशु और आगे मानस में प्रष्ठित कर देती है।
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