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एकीभाव उदाहरण वाक्य

उदाहरण वाक्य
21.“क्योंकि जिसका मन अच्छी प्रकार शान्त है (और) जो पाप से रहित है (और) जिसका रजोगुण शान्त हो गया है ऐसे इस सच्चिदानन्दधन ब्रह्म के साथ एकीभाव हुए योगी को अति उत्तम आनन्द प्राप्त होता है”।

22.भावार्थ: क्योंकि जिसका मन भली प्रकार शांत है, जो पाप से रहित है और जिसका रजोगुण शांत हो गया है, ऐसे इस सच्चिदानन्दघन ब्रह्म के साथ एकीभाव हुए योगी को उत्तम आनंद प्राप्त होता है॥27॥

23. ' ' बारह भिन्न प्रकार के यज्ञ यहाँ जो आत्मरूपयज्ञ की बात कही गयी है, उससे गीताकार का आशय है-“ परमात्मा में ज्ञान द्वारा एकीभाव से स्थित होकर ब्रह्मरूप अग्रि में यजन करना ” ।

24.अर्थात्-सर्वव्यापी अनन्त चेतना में एकीभाव से स्थित रूप योग से युक्त हुए आत्मा वाला तथा सबमें समभाव से देखने वाला योगी आत्मा को सम्पूर्ण भूतों में और सम्पूर्ण भूतों को आत्मा में देखता है ।

25.आगे ३ १ वें श्लोक में कहते हैं कि जो भी दिव्य कर्मी योगी एकीभाव से समस्त प्राणियों में भगवद्रूप की उपासना करते हैं, वे वर्त्तमान में रहते हुए भी उन्हीं परमेश्वर में निवास करते हैं।

26.भावार्थ: सर्वव्यापी अनंत चेतन में एकीभाव से स्थिति रूप योग से युक्त आत्मा वाला तथा सब में समभाव से देखने वाला योगी आत्मा को सम्पूर्ण भूतों में स्थित और सम्पूर्ण भूतों को आत्मा में कल्पित देखता है॥29॥

27.भावार्थ: जो पुरुष प्रिय को प्राप्त होकर हर्षित नहीं हो और अप्रिय को प्राप्त होकर उद्विग्न न हो, वह स्थिरबुद्धि, संशयरहित, ब्रह्मवेत्ता पुरुष सच्चिदानन्दघन परब्रह्म परमात्मा में एकीभाव से नित्य स्थित है॥ 20 ॥

28.भावार्थ: जो पुरुष एकीभाव में स्थित होकर सम्पूर्ण भूतों में आत्मरूप से स्थित मुझ सच्चिदानन्दघन वासुदेव को भजता है, वह योगी सब प्रकार से बरतता हुआ भी मुझमें ही बरतता है॥31॥ आत्मौपम्येन सर्वत्र समं पश्यति योऽर्जुन ।

29.उनमें (चारों प्रकार के भक्तों में) मुझे में एकीभाव से स्थित अनन्य प्रेमभक्ति वाला ज्ञानी भक्त अति उत्तम है, क्यूंकि मुझको तत्व से जाननेवाले ज्ञानी को मैं अत्यंत प्रिय हूँ और वह ज्ञानी मुझे अत्यंत प्रिय है.

30.) के द्वारा इस प्रकार चतुर्भुज रूपवाला मैं प्रत्यक्ष देखने के लिए, तत्व से जानने के लिए तथा प्रवेश करने के लिए अर्थात एकीभाव से प्राप्त होने के लिए भी शक्य हूँ॥ 54 ॥ मत्कर्मकृन्मत्परमो मद्भक्तः सङ् गवर्जितः ।

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