शक्तिशाली चुम्बकों का प्रयोग कशेरूका-सन्धिशोथ, सायटिका (गृध्रसी), कमर दर्द, गठिया, कष्टार्तव (दर्द के साथ होने वाली माहवारी), अकौता, छाजन, पक्षाघात तथा पोलियो आदि रोगों पर किया जाता है।
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यह ठंडी प्रकृति वालों के लिए अच्छा है, अर्द्धांग वात, गृध्रसी झानक बाई (साइटिका के कारण उत्पन्न बाय का दर्द), जलोदर (पेट में पानी की अधिकता) तथा समस्त वायुरोगों की नाशक है इसके पत्ते, जड़ और बीज उसका तेल सभी औषधि के रूप में इस्तेमाल किए जाते है।
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शरीर के बाहरी अंग से सम्बंधित लक्षण-रोगी के शरीर के अंगों में गठिया का दर् द उठना और झटके से लगना, गृध्रसी (सायटिका) का दर्द जो रोगी के खड़े होने पर या पैर जमीन पर रखने से बढ़ जाता है तथा घूमने से कम हो जाता है, रोगी अगर बैठा रहता है तो उसकी पैर की एड़ी में दर्द होने लगता है।
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इससे 80 प्रकार के वात रोग जैसे-पक्षाघात (लकवा), अर्दित (मुँह का लकवा), गृध्रसी (सायटिका), जोड़ों का दर्द, हाथ पैरों में सुन्नता अथवा जकड़न, कम्पन, दर्द, गर्दन व कमर का दर्द, स्पांडिलोसिस आदि तथा दमा, पुरानी खाँसी, अस्थिच्युत (डिसलोकेशन), अस्थिभग्न (फ्रेक्चर) एवं अन्य अस्थिरोग दूर होते हैं।
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ऐसे रोगियों में आगे चलकर गृध्रसी वात (सायटिका) भी हो जाता है, जिसमें किसी भी एक पैर में कूल्हे से एड़ी तक, पीछे की तरफ एक ही नस में दर्द होना, पांव में झुनझुनी होना, पालथी (सुखासन) लगाकर बैठने से पैर का सो जाना, बैठने के बाद फिर पांव लम्बा करने की इच्छा होना, खड़े होने, चलने, बैठने में दर्द बढ़ना व लेटने से आराम होना आदि लक्षण मिलते हैं।
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गृध्रसी या सायटिका में भी समस्या मुख्य रूप से रीढ़ की हड्डी व कमर की नसों (नर्व) से जिसका सीधा संबंध पैर से होता है, के दबने या उस पर हड्डियों की आपसी रगड़ के कारण सायटिका नर्व की लाइन में कमर के पिछले भाग से पैर के अंगूठे तक तीव्र दर्द उठने लगता है, (चित्र देखें), ओर उपरोक्त लक्षण एक के बाद एक या एक साथ प्रकट होते जाते हें।
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ऐसे रोगियों में आगे चलकर गृध्रसी वात (सायटिका) भी हो जाता है, जिसमें किसी भी एक पैर में कूल्हे से एड़ी तक, पीछे की तरफ एक ही नस में दर्द होना, पांव में झुनझुनी होना, पालथी (सुखासन) लगाकर बैठने से पैर का सो जाना, बैठने के बाद फिर पांव लम्बा करने की इच्छा होना, खड़े होने, चलने, बैठने में दर्द बढ़ना व लेटने से आराम होना आदि लक्षण मिलते हैं।