चित्र-परिचय प्रभु के गुणों का कीर्तन करता हुआ भक्त धीरे-धीरे (आत्मा से महात्मा और फिर परमात्मा) प्रभु के स्वरूप को प्राप्त कर रहा है।
22.
चित्र-परिचय (कारागार-भय-मुक्ति) कारागार में गले से पैरों तक कठोर बेड़ियों से बँधा व्यक्ति प्रभु का स्मरण करने पर (बेड़ियाँ अपने आप टूट-टूटकर गिर जाती हैं)
23.
चित्र-परिचय प्रखर बुद्धिमान् देवेन्द्र भगवान आदिनाथ की स्तुति कर रहे हैं, उनके समक्ष अति अल्पबुद्धि वाला भक्त भी स्तुति करने का प्रयास कर रहा है।
24.
चित्र-परिचय (अग्नि-भय-मुक्ति) जंगल में आग लगने पर सभी वन्य-जीव अपनी-अपनी जान बचाने के लिए भाग रहे हैं, और प्रभु-भक्त के आसपास शान्ति देखकर शरण लेते हैं।
25.
चित्र-परिचय भगवान का दिव्य अतिशय है-जहाँ-जहाँ चरण पड़ते हैं, वहाँ-वहाँ आगे से आगे भक्त देवगण दिव्य शक्ति से स्वर्ण-कमलों की रचना करते जाते हैं।
26.
चित्र-परिचय (चामर प्रातिहार्य) स्वर्णगिरि-सुमेरु के चन्द्र-किरण से उज्ज्वल झरनों के साथ भगवान की स्वर्णिम देह के दोनों ओर दोलायमान उज्ज्वल चँवरों की तुलना की गई है।
27.
(नहीं।) चित्र-परिचय हीरा-पन्ना-नीलम-मोती आदि मणियों की अपनी निर्मल कान्ति (प्रभा) के सामने सूर्य की किरणों से मामूली-सी चमक वाले काँच के टुकड़ों का क्या महत्त्व है?
28.
चित्र-परिचय सूर्य उदय, अस्त होता है, राहु से ग्रसा जाता है, बादलों से आच्छादित होता है किन्तु जिनेश्वरदेवरूप सूर्य का प्रभाव कोई भी कम नहीं कर सकता।
29.
चित्र-परिचय भयों के बीच घिरा चिन्तित-भयभीत व्यक्ति जब भक्तिपूर्वक स्तोत्र पाठ करने बैठा है, तो सब भय दूर भाग गये और वह प्रसन्नता का अनुभव करता है।
30.
चित्र-परिचय जिनेश्वरदेव का स्तोत्र करने वाला भक्त उनकी ज्योतिर्मय आभा से पूर्ण रूप से पवित्र हो गया है, तथा नाम स्मरण करने वाले भी क्रमशः पापमुक्त हो रहे हैं।