१. हिंदी गज़ल संरचना-एक परिचय (सन् १ ९ ८ ४ में मेरे द्वारा इल्मे-अरूज़-उर्दू छंद-शास्त्र) का सर्व प्रथम हिंदी में रूपांतर,
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फाइबोनैचि अनुक्रम प्राचीन भारत में काफ़ी विख्यात था, जहां इसे यूरोप में प्रचलित होने से बहुत समय पहले ही छंद विज्ञान (छंद-शास्त्र) में लागू किया गया था.
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समग्रतः यह बात मेरी समझ से परे है कि हिन्दी छंद-शास्त्र को ‘ ठेंगा ' दिखाने वाली इस चतुष्पदी रचना (मुक्तक) को आख़िर किसने, कब, किस आधार पर और किस अधिकार से ‘
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लेकिन कुमार विश्वास की मज़बूरी देखिये कि वे स्वयं, हिंदी व उर्दू छंद-शास्त्र की धज्जियां उड़ाते अपने मुक्तक ‘ कोई दीवाना कहता है ' की चार लाइनें पढ़ते हुए बीस से ज़्यादा चुटकुले सुना जाते हैं.
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उनके अनुसार-‘ ग़ज़ल की बुनियाद, विधा एवं छंद-शास्त्र (इल्मे-अरूज़) की अनगिनत बारीकियों पर बना एक भवन है जिसमें कवि अपने मनोभाव, उद्गार, विचार, दुख-दर्द, अनुभव तथा अपनी अनुभूतियाँ सजाता है ।
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पिंगला के इस छंद-शास्त्र से पता चलता है की द्विआधरिय [Binary] पद्धति हमारे भारतवर्ष में ईसा से करीब ५ ०० वर्ष पूर्व से प्रयुक्त की रही है, जबकि जर्मन वैज्ञानिक ने इसे १ ६ ९ ५ में खोजा था।
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इन्हीं सामयिक व युगानुकूल आवश्यकताओं के अभाव की पूर्ति व हिन्दी भाषा, साहित्य, छंद-शास्त्र व समाज के और अग्रगामी, उत्तरोत्तर व समग्र विकास की प्राप्ति हेतु नवीन धारा “ अगीत ” का आविर्भाव हुआ, जो निराला-युग के काव्य-मुक्ति आन्दोलन को आगे बढ़ाते हुए भी उनके मुक्त-छंद काव्य से पृथक अगले सोपान की धारा है।