बीजो को बुवाई से पहले बीजो को 2 ग्राम एवं थीरम 2 ग्राम कार्बेन्डाजिम के मिश्रण से प्रति किलो ग्राम बीज को उपचारित करने के पश्चात बुवाई करनी चाहिएI जब पौधे एक सप्ताह के लगभग हो जाए तब डाइथेन एम् 45 या वैविसटीन 2 ग्राम प्रति लीटर पानी में घोल बनाकर छिडकाव करना चाहिएI
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मिर्च की फसल में मोजेक बहुत ज्यादा लगता है, जिसे हम लीफ कर्ल के नाम से पुकारते है, यह मोजेक, वाइट फलाई या सफ़ेद मक्खी से फैलता है, इसके नियंत्रण के डाइथेन यम-45 अथवा डाइथेन जेड-78 तथा मेटा सिसटक 1 लीटर प्रति हेक्टर के हिसाब से खड़ी फसल में छिडकाव करना चाहिए, इसके बचाव के लिए 10 से 15 दिन पर लगातार छिडकाव करते रहना चाहिए, जिससे की हमारी फसल अच्छी पैदावार दे सकेI
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मिर्च की फसल में मोजेक बहुत ज्यादा लगता है, जिसे हम लीफ कर्ल के नाम से पुकारते है, यह मोजेक, वाइट फलाई या सफ़ेद मक्खी से फैलता है, इसके नियंत्रण के डाइथेन यम-45 अथवा डाइथेन जेड-78 तथा मेटा सिसटक 1 लीटर प्रति हेक्टर के हिसाब से खड़ी फसल में छिडकाव करना चाहिए, इसके बचाव के लिए 10 से 15 दिन पर लगातार छिडकाव करते रहना चाहिए, जिससे की हमारी फसल अच्छी पैदावार दे सकेI
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मिर्च की फसल में मोजेक बहुत ज्यादा लगता है, जिसे हम लीफ कर्ल के नाम से पुकारते है, यह मोजेक, वाइट फलाई या सफ़ेद मक्खी से फैलता है, इसके नियंत्रण के डाइथेन यम-45 अथवा डाइथेन जेड-78 तथा मेटा सिसटक 1 लीटर प्रति हेक्टर के हिसाब से खड़ी फसल में छिडकाव करना चाहिए, इसके बचाव के लिए 10 से 15 दिन पर लगातार छिडकाव करते रहना चाहिए, जिससे की हमारी फसल अच्छी पैदावार दे सकेI
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मिर्च की फसल में मोजेक बहुत ज्यादा लगता है, जिसे हम लीफ कर्ल के नाम से पुकारते है, यह मोजेक, वाइट फलाई या सफ़ेद मक्खी से फैलता है, इसके नियंत्रण के डाइथेन यम-45 अथवा डाइथेन जेड-78 तथा मेटा सिसटक 1 लीटर प्रति हेक्टर के हिसाब से खड़ी फसल में छिडकाव करना चाहिए, इसके बचाव के लिए 10 से 15 दिन पर लगातार छिडकाव करते रहना चाहिए, जिससे की हमारी फसल अच्छी पैदावार दे सकेI
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इसके साथ ही पौधों को रोगों व कीटाणुओं तथा पशु-पक्षियों से बचाने के लिए छिड़के जाने वाले मैलाथियान, गैमेक्सीन, डाइथेन एम 45, डाइथेन जेड 78 और 2,4 डी जैसे हानिकारक तत्व प्राकृतिक उर्वरता को नष्ट कर मृदा की साधना में व्यतिक्रम उत्पन्न कर इसे दूषित कर रहे हैं जिससे इसमें उत्पन्न होने वाले खाद्य पदार्थ विषाक्त होते जा रहे हैं और यही विषाक्त पदार्थ जब भोजन के माध्यम से मानव शरीर में पहुंचते हैं तो उससे कई प्रकार की बीमारियां हो जाती हैं।
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इसके साथ ही पौधों को रोगों व कीटाणुओं तथा पशु-पक्षियों से बचाने के लिए छिड़के जाने वाले मैलाथियान, गैमेक्सीन, डाइथेन एम 45, डाइथेन जेड 78 और 2,4 डी जैसे हानिकारक तत्व प्राकृतिक उर्वरता को नष्ट कर मृदा की साधना में व्यतिक्रम उत्पन्न कर इसे दूषित कर रहे हैं जिससे इसमें उत्पन्न होने वाले खाद्य पदार्थ विषाक्त होते जा रहे हैं और यही विषाक्त पदार्थ जब भोजन के माध्यम से मानव शरीर में पहुंचते हैं तो उससे कई प्रकार की बीमारियां हो जाती हैं।
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इसके साथ ही पौधों को रोगों व कीटाणुआें तथा पशु पक्षियों से बचाने के लिए छिड़के जाने वाले मैथिलियान, गैमेक्सीन, डाइथेन एम ४५, डाइथेन जेड ७८ और २,४ डी जैसे हानिकारक तत्व प्राकृतिक उर्वरता को नष्ट कर मृदा की साधना में व्यतिक्रम उत्पन्न कर इसे दूषित कर रहे हैं जिससे इसमें उत्पन्न होने वाले खाद्य पदार्थ विषाक्त होते जा रहे हैं और यही विषाक्त पदार्थ जब भोजन के माध्यम से मानव शरीर में पहुँचते हैं तो उसे नाना प्रकार की बीमारियां हो जाती हैं ।
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इसके साथ ही पौधों को रोगों व कीटाणुआें तथा पशु पक्षियों से बचाने के लिए छिड़के जाने वाले मैथिलियान, गैमेक्सीन, डाइथेन एम ४५, डाइथेन जेड ७८ और २,४ डी जैसे हानिकारक तत्व प्राकृतिक उर्वरता को नष्ट कर मृदा की साधना में व्यतिक्रम उत्पन्न कर इसे दूषित कर रहे हैं जिससे इसमें उत्पन्न होने वाले खाद्य पदार्थ विषाक्त होते जा रहे हैं और यही विषाक्त पदार्थ जब भोजन के माध्यम से मानव शरीर में पहुँचते हैं तो उसे नाना प्रकार की बीमारियां हो जाती हैं ।
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इसके साथ ही पौधों को रोगों व कीटाणुओं तथा पशु पक्षियों से बचाव के लिए छिड़के जाने वाले मैलिथियान, गैमेक्सीन, डाइथेन एम 45, डाइथेन जेड 78 और 2,4 डी जैसे हानिकारक तत्व प्राकृतिक उर्वरता को नष्ट कर मृदा की साधना में व्यतिक्रम उत्पन्न कर इसे दूषित कर रहे हैं जिससे इसमें उत्पन्न होने वाले खाद्य पदार्थ विषाक्त होते जा रहे हैं और यही विषाक्त पदार्थ जब भोजन के माध्यम से मानव शरीर में पहुँचते हैं तो उसे नाना प्रकार की बीमारियां हो जाती हैं।