तदैव लग्नं सुदिनं तदैव, ताराबलं चंद्रबलं तदैव विद्याबलं दैवबलं तदैव लक्ष्मिपतिम तेंघ्रियुग्मस्मरामि जैसा कि उपरोक्त संस्कृत वचन से स्पष्ट है कि प्रभु के बनाए सभी दिन, लग्न, मुहूर्त आदि सबके लिए समान रूप से शुभ होते हैं।
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तदैव लग्नं सुदिनं तदैव, ताराबलं चंद्रबलं तदैव विद्याबलं दैवबलं तदैव लक्ष्मिपतिम तेंघ्रियुग्मस्मरामि जैसा कि उपरोक्त संस्कृत वचन से स्पष्ट है कि प्रभु के बनाए सभी दिन, लग्न, मुहूर्त आदि सबके लिए समान रूप से शुभ होते हैं।
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तदैव लग्नं सुदिनं तदैव, ताराबलं चंद्रबलं तदैव विद्याबलं दैवबलं तदैव लक्ष्मिपतिम तेंघ्रियुग्मस्मरामि जैसा कि उपरोक्त संस्कृत वचन से स्पष्ट है कि प्रभु के बनाए सभी दिन, लग्न, मुहूर्त आदि सबके लिए समान रूप से शुभ होते हैं।
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तदैव लग्नं सुदिनं तदैव, ताराबलं चंद्रबलं तदैव विद्याबलं दैवबलं तदैव लक्ष्मिपतिम तेंघ्रियुग्मस्मरामि जैसा कि उपरोक्त संस्कृत वचन से स्पष्ट है कि प्रभु के बनाए सभी दिन, लग्न, मुहूर्त आदि सबके लिए समान रूप से शुभ होते हैं।
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अन्य छन्दों, पदों ये प्रसंगों के परस्पर निरपेक्ष होने के साथ-साथ जिस काव्यांश को पढने से पाठक के अंत: करण में रस-सलिला प्रवाहित हो वही मुक्तक है-' मुक्त्मन्यें नालिंगितम.... पूर्वापरनिरपेक्षाणि हि येन रसचर्वणा क्रियते तदैव मुक्तकं '
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इस प्रकार जब पंचचामर के लघु-गुरु अक्षर नर्मदा के प्रवाह का अनुकरण करते हैं, तब भक्त लोग मस्ती में आकर कहते हैं, 'हे माता! तेरे पवित्र जल का दूर से दर्शन करके ही इस संसार की समस्त बाधाएं दूर हो गयीं-'गतं तदैव मे भयं त्वदम्बु वीक्षितं यदा'।
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भवापवर्गो भ्रमतो यदा भवेत् जनस्य तर्ह्यच्चुत सत्समागमः | सत्सङ्गमो यर्हि तदैव सद्गतौ परावरेशे त्वयि जायते मतिः || (श्रीमद्भागवत,10.51.53) अर्थात् हे अच्यूत! जब भ्रमणशील जीव का भौतिक जीवन समाप्त हो जाता है तो वह आपके भक्तों की संगति प्राप्त कर सकता है.
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" जिसके विरूद्ध कोई भी सुझाव मात्र अपीलार्थी/अभियुक्त की ओर से नहीं पूछा गया कि कथित बरामदशुदा खाल को परीक्षण हेतु नहीं भेजा गया, जिससे बरामदशुदा खाल के संबंध में परीक्षण रिपोर्ट, जो पत्रावली पर 8क/9 है, में चार विशेषज्ञों द्वारा बरामद की गई खाल के बावत सुझाव दिया गया कि त्वचा उस तदैव से पृथक नहीं किए जाने योग्य है।
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सौंदर्य और सौन्दर्य बोध का फलसफा बहुत पुराना है-वाल्मीकि रामायण में ' क्षणे क्षणे यन्न्वतामुपेती तदैव रूपं रमणीयताह ' [जो क्षण क्षण में नवीनता ग्रहण कर रहा हो वही रमणीय है] का उद्घोष है तो मानों उसी तर्ज पर बिहारी नायिका का सौन्दर्य कुछ ऐसा है कि गर्वीला चित्रकार हाथ मलता रह जाता है क्योंकि क्षण क्षण बदलती नायिका की सौन्दर्य भाव भंगिमा को वह उकेर नही पाता ।