इससे सम्पुटित कर काई भी पूजन अर्चन लोक परलोक दोनो में अभ्युदय ओर निःश्रेयस का कारण होता है।
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भूगोल, इतिहास और राज्य व्यवस्थाओं की क्षुद्र संकीर्णताओं के इतर प्रत्येक मानव का अभ्युदय और निःश्रेयस ही भारत का अभीष्ट है।
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इस प्रकार भारतीय दार्शनिक दृष्टि से भोग और मोक्ष अभ्युदय और निःश्रेयस दोनों को ही मानव जीवन के लिए आवश्यक माना गया है।
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इस प्रकार भारतीय दार्शनिक दृष्टि से भोग और मोक्ष अभ्युदय और निःश्रेयस दोनों को ही मानव जीवन के लिए आवश्यक माना गया है।
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अर्थात् अभ्युदय (सांसारिक उन्नति) एवं निःश्रेयस (पारलौकिक कल्याण) की सिद्धि के लिए जिसका वरण किया जाए, वही वर्ण है।
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“जिसके आचरण करने से संसार में उत्तम सुख और निःश्रेयस अर्थात मोक्षसुख की प्राप्ति होती है, उसी का नाम धर्म है | यह भी वेदों की व्याख्या है |
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भारतीय संस्कृति में चार पुरुषार्थ अर्थात् धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष को जीवन के मूल्यों के रूप में उल्लेखित करते हुए 'मोक्ष‘ को निःश्रेयस की प्राप्ति का सर्वोत्तम लक्ष्य माना गया।
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रंगोत्सव के इस पावन पर्व पर सबको अपने जीवन में अभ्युदय और निःश्रेयस की प्राप्ति हो!!!!! जीवन में कुछ कर गुजरने के लिए मनुष्य का धार्मिक होना बहुत जरूरी है।
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व्यक्ति का मोक्ष और समाज का उद्धार इन दोनों आदर्शों को अभेद बुद्धि से देखने वाले, अभ्युदय और निःश्रेयस का समन्वय साधने वाले और अध्यात्म-परायण व्यास से बढ़कर कोई समाजशास्त्री नहीं हुआ है।
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व्यक्ति का मोक्ष और समाज का उद्धार इन दोनों आदर्शों को अभेद बुद्धि से देखने वाले, अभ्युदय और निःश्रेयस का समन्वय साधने वाले और अध्यात्म-परायण व्यास से बढ़कर कोई समाजशास्त्री नहीं हुआ है।