मकडियां शिकार के चारों ओर अपने पेप्सिन एंजाइम का स्रव करके सारे पोषक तत्वों को लिक्विड रूप में बदल देती हैं।
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सामान्य तौर पर यह अम्ल तथा पेप्सिन आमाशय में ही रहता है तथा भोजन नली के सम्पर्क में नही आता है।
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नाम दिया था इसमें प्रयुक्त कोला फली, और संभवत: पेप्सिन नामक एंजाइम के नाम पर जो कि पाचन-क्रिया में सहायक होती है.
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दरअसल अम्ल-पित्त का कारण आमाशय की दीवारों में संचित हाइड्रोक्लोरिक एसिड व पेप्सिन नामक एंजाइम का जरूरत से ज्यादा स्राव होना है.
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प्रोएंजाइम पेप्सिनोजेन हाइड्रोक्लोरिक अम्ल के संपर्क में आने से सक्रिय एंजाइम पेप्सिन में परिवर्तित हो जाता है जो आमाशय का प्रोटीन-अपघटनीय एंजाइम है।
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प्रोएंजाइम पेप्सिनोजेन हाइड्रोक्लोरिक अम्ल के संपर्क में आने से सक्रिय एंजाइम पेप्सिन में परिवर्तित हो जाता है जो आमाशय का प्रोटीन-अपघटनीय एंजाइम है।
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इसके अलावा इसमें कैल्शियम, सोड़ियम तथा पोटैशियम, विभिन्न प्रकार के विटामिन जैसे-पेप्सिन तथा ट्रिप्सिन आदि एन्जाइम भी पाये जाते हैं।
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जब इनमें कोई विकृति आ जाती है तो कई बार अपने आप खुल जाती है और एसिड तथा पेप्सिन भोजन नली में आ जाता है।
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जब इनमें कोई विकृति आ जाती है तो कई बार अपने आप खुल जाती है और एसिड तथा पेप्सिन भोजन नली में आ जाता है।
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मोटिलिन-यह पाचनान्त्र में होता है और गैस्ट्रोइंटेस्टिनल मोटिलिटी के स्थानांतरित होते मायोइलेक्ट्रिक जटिल घटक को बढ़ाता है और पेप्सिन उत्पादन का उद्दीपन करता है.