उसी पुस्तक के दूसरे लेखांश में, ताओ-त्जू ने कहा था: संसार में सभी वस्तुएँ “ यू ” या धन से पैदा हुई हैं ; और “ यू ” या धन की उत्पत्ति “ वू ” या निर्धनता से हुई है।
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सभी भाषा और बोलियों के संग्रहण हेतु नमूनों के तीन आधारभूत हिस्से होते थे-मानक अनुवाद, स्थानीय बोलचाल के आधार पर तैयार लेखांश, और 1866 में बंगाल एशियाटिक सोसायटी द्वारा शब्दों और वाक्यों की तैयार की गई मूल सूची।
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उस समय बारदौली की स्थिति कहाँ तक गंभीर हो गई थी, इसका कुछ अनुमान बंबई के अंगेजों के मूख पत्र ' टाइम्स ' ऑफ इंडिया ' के निम्न लेखांश से हो सकता है-” आर्य देश के बंबई प्रांत में बारदौली नाम का एक मंडल है।
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इन दोनों महान् नेताओं का सहयोग व्यावहारिक रूप में किस प्रकार प्रकट हुआ, यह कांग्रेस के एक उच्च कार्यकर्ता तथा सभी नेताओं से संपर्क रखने वाले श्री हरिभाऊ उपाध्याय के इस लेखांश से विदित हो सकता है-पं ० जवाहरलाल नेहरू तथा सरदार के मिजाज में बहुत अंतर था।
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जिन ब्लॉगों की सामग्री हूबहू ली गई हैं उनमें रवि रतलामी (रविशंकर श्रीवास्तव) का अभिव्यक्ति में लेख, बी एस पाबला के ब्लॉग बुखार से 3 पोस्ट, अविनाश वाचस्पति के नुक्कड़ से एक पोस्ट, शिवम मिश्रा के बुरा भला से एक पोस्ट, नवभारत टाईम्स पर मंगलेश डबराल का ब्लॉग आधारित लेखांश मुख्य हैं।...”