भावार्थ: मैं ही सब प्राणियों के शरीर में स्थित रहने वाला प्राण और अपान से संयुक्त वैश्वानर अग्नि रूप होकर चार (भक्ष्य, भोज्य, लेह्य और चोष्य, ऐसे चार प्रकार के अन्न होते हैं, उनमें जो चबाकर खाया जाता है, वह ' भक्ष्य ' है-जैसे रोटी आदि।
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पाँचवें महीने के बाद किये जाने के पीछे यह भाव है कि हमारी शारीरिक व बौद्धिक अभिवृद्धि में जिन तीन प्रकार के पदार्थों का योगदान होता है, वे हैं-(1.) पेय, (2.) लेह्य / चूस्य तथा भोज्य, किंतु इनके लिए हमारी शारीरिक पाचन प्रक्रिया का विकास शनै:-शनै: होता है।