एक मेघदूत ही नहीं, वर्षा-ऋतु तो सदियों से ही ललित कला में पूरे श्रृंगार, करुणा व आवेग...
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कहते हैं महात्मा बुद्ध को ये जगह काफी पसंद आ गई और वे हर वर्षा-ऋतु में यहां आकर प्रवास करने लगे।
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इस तरह उन्होंनें कुल 24 वर्षा-ऋतु इसी जेतवन में बिताई थी-अपने जीवन के शायद सबसे ज्यादा दिन बुद्ध ने यहीं बिताए थे।
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प्रकृति की सुन्दरतम ऋतु-वर्षा-ऋतु-आदि कवि वाल्मीकि से लेकर आधुनिक नवगीतकारों तक को काव्य सृजन की प्रेरणा देती रही हैं।
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आप रेलगाड़ी में जा रहे हों, या बस में, या फिर किसी और वाहन में, कई इलाकों में वर्षा-ऋतु के बाद खाली पड़े खेतों को देखकर आपको भी ज़रूर दुःख होता होगा! वहीं इन सूखे खेतों के आजू-बाजू की ज़मीन पर कहीं-कहीं हरियाली नज़र आने पर आश्चर्य भी! उस दिन एक सड़क से गुजर रहा था,.