मातृ-भाषा में यदि शिक्षा की धाराप्रशस्त न हो तो इस विद्याहीन देश में मरुवासी मन का क्या होगा” गुरुदेवविश्व स्तर पर आज हमारा भारत देश हर तरह से संपन्न और प्रगतिशील माना जाता
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उसके मूल अधिकारों पर प्रतिबंध लगाकर पुरुष को हर जगह बेहतर बताकर नारी के अवचेन में शक्तिहीन होने का अहसास जगाया गया जिसके चलते उसे आसानी से विद्याहीन, साहसहीन कर दिया जाए।
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समीक्षा क्रम सं0 51 में लिखा है ‘‘जिस समय ईसाई और मुसलमानों का मत चला था, उस समय उन देशों में जंगली और विद्याहीन मनुष्य अधिक थे इसलिए ऐसे विद्या विरूद्ध मत चल गए।
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सर्वसाधारण की शिक्षा के विषय में विचार करते हुए गुरुदेव ने अपनी चिंता इन शब्दों में प्रकट की मातृ-भाषा में यदि शिक्षा की धाराप्रशस्त न हो तो इस विद्याहीन देश में मरुवासी मन का क्या होगा ।
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समीक्षा क्रम सं 0 51 में लिखा है ‘‘ जिस समय ईसाई और मुसलमानों का मत चला था, उस समय उन देशों में जंगली और विद्याहीन मनुष्य अधिक थे इसलिए ऐसे विद्या विरूद्ध मत चल गए।
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सर्वसाधारण की शिक्षा के विषय में विचार करते हुए गुरुदेव ने अपनी चिंता इन शब्दों में प्रकट की मातृ-भाषा में यदि शिक्षा की धाराप्रशस्त न हो तो इस विद्याहीन देश में मरुवासी मन का क्या होगा ।
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सत्यार्थ प्रकाश ' के लेखक ने मुसलमानों के लिए जंगली, अल्पज्ञ, विद्याहीन, म्लेच्छ, दुष्ट, धोखेबाज़, लड़ाईबाज़, गदर मचाने वाले, अन्यायी, विषयी (Sexual) आदि अपमानजनक शब्दों का प्रयोग किया है।
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पास रहने वाला कैसा ही विद्याहीन, कुलहीन तथा विसंगत मनुष्य क्यों न हो राजा उसी से हित करने लगता है, क्योंकि राजा, स्री और बेल ये बहुधा जो अपने पास रहता है, उसी का आश्रय कर लेते हैं।
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आलसी व्यक्ति को कभी विद्या प्राप्त नही होती है, विद्याहीन व्यक्ति को कभी धन प्राप्त नही होता है, निर्धन मनुष्य का कभी कोई मित्र नहीं होता है और बिना मित्र के किसी भी व्यक्ति को सुख प्राप्त नहीं होता है।
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" लक्ष्मीदेवी ने समझाते हुए कहा." हाँ, मां! तुम ठीक कह रही हो लेकिन मनुष्यों में भी ऐसे लोग हैं जो अविवेकीहैं, धर्महीन हैं, विद्याहीन हैं, गुणहीन हैं, उनके बारे में तुम्हारा क्याख्याल है? "" बेटा! मनुष्य जीवन के भी दो पहलू हैं-अच्छा और बुरा.