संदीपक खूब शांति से, धैर्य से यह सब सहते हुए दिन प्रतिदिन ज्यादा तत्परता से गुरु की सेवा में मग्न रहने लगा।
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सूखी पुरानी इमली संदीपक, भेदक, हल्की, हृदय के लिये हितकारी, कफ एवं वात रोगों में पथ्यकारी तथा कृमिनाशक होती है।
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भगवान ने फिर से आग्रह किया तो संदीपक ने कहाः ” आप मुझे यही वरदान दें कि गुरु में मेरी अटल श्रद्धा बनी रहे।
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संस्कृत की एक सूक्ति में तांबूल के गुणवर्णन में कहा है-वह वातध्न, कृमिनाशक, कफदोषदूरक, (मुख की) दुर्गंध का नाशकर्ता और कामग्नि संदीपक है।
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संस्कृत की एक सूक्ति में तांबूल के गुणवर्णन में कहा है-वह वातध्न, कृमिनाशक, कफदोषदूरक, (मुख की) दुर्गंध का नाशकर्ता और कामग्नि संदीपक है।
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संदीपक की ऐसी अनन्य गुरुनिष्ठा देखकर काशी के अधिष्ठाता देव भगवान विश्वनाथ उसके समक्ष प्रकट हो गये और बोलेः ” तेरी गुरुभक्ति एवं गुरुसेवा देखकर हम प्रसन्न हैं।
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कोढ़ी शरीर से निकलने वाला गन्दा खून, पीव, मवाद, बदबू आदि के बावजूद भी गुरुदेव के शरीर की सेवा-सुश्रुषा से संदीपक कभी ऊबता नहीं था।
28.
न कोढ़, न कोई अंधापन, न अस्वस्थता! शिवस्वरूप सदगुरु श्री वेदधर्म ने संदीपक को अपनी तात्त्विक दृष्टि एवं उपदेश से पूर्णत्व में प्रतिष्ठित कर दिया।
29.
गुरु ने संदीपक को खूब डाँटते हुए कहाः ” सेवा करते-करते थका है इसलिए वरदान माँगता है कि मैं अच्छा हो जाऊँ और सेवा से तेरी जान छूटे!
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संस्कृत की एक सूक्ति में तांबूल के गुणवर्णन में कहा है-वह वातध्न, कृमिनाशक, कफदोषदूरक, (मुख की) दुर्गंध का नाशकर्ता और कामग्नि संदीपक है।