रोगी अपने विचारों का सही मूल्यांकन नहीं कर पाता ; उदाहरण के लिये, एक न्यायालय से दूसरे न्यायालय में मामला ले जानेवाले और अपने कानूनी परामर्शदाता तक पर बिगड़ उठनेवाला, संविभ्रमी मुकदमेबाज इस भ्रम में हो सकता है कि वह केवल यथार्थ के लिये नहीं, बल्कि एक बृहत्तर सिद्धांत के लिये संघर्ष कर रहा है।